Thursday, March 31, 2022

मज़हब ए इस्लाम /Religion ISLAAM

 


1070 में जब बैतुल मुकद्दस को ईसाइयों ने मुसलमानों से जीता तो 70 हज़ार गैर फौजी मुस्लमानो को एक मुश्त कत्ल कर दिया गया था।
जिस मुस्लिम आवाम ने जंग नहीं करी उसका क्या कसूर था उन मुसलमानों आदमी औरत और बच्चों तक को नहीं बख्शा गया
जो मुसलमान ईसाई फौजों से बच गए थे, उन्हे पादरियों ने ज़िबह कर दिया था।
इतिहासकार जांसफन खुद ईसाई होकर लिखते हैं कि पूरा शहर औरतों बच्चों और मर्दों की चीखों से कराह रह था
जिससे योरूशल्म के दरों दीवार कांप उठे थे। इस घटना के 90 साल बाद जब फातेह सलाहुद्दीन अयूबी ने बैतूल मुकद्दस को फिर से फतह किया तो उसकी यादें ताज़ा हो गईं।
एक लाख ईसाई औरत, मर्द बच्चे उनकी जद में थे।
सभी रो रहे थे कि ईसाईयों ने सलाहुद्दीन अयूबी से कहा 90 साल पुराना बदल लेने के लिए उन्हें क़त्ल न किया जाए।
सलाहुद्दीन अयूबी ने कहा हम मुसलमान हैं। फौजी लड़ाई में मासूमो को नही मारते। आप आज़ाद हो, जहां चाहो जा सकते हो।
जितना रसद आप लेना चाहो ले जा सकते हो और आप जहां भी जाना चाहते हैं हमारी तलवारों के साए में हम आपको महफूज वहां तक छोड़कर आएंगे
ईसाइयों को सलाहुद्दीन अयूबी पर विश्वास नहीं हुआ
उन्होंने कहा यह जानते हुए भी हमने जब यरूशलम फतेह किया था हमने किसी मुसलमान की जान नहीं बख्शे थी और हमने किसी मुसलमान को जिंदा नहीं जाने दिया था
सलाहुद्दीन अयूबी ने कहा हमारे रसूल ने जंग के मैदान में इंसानियत के कुछ उसूल बताएं हैं
मैं तो क्या कोई भी मुसलमान रसूल के उसूलों के खिलाफ नहीं जा सकता
आपने अपने लोगों के जान की हिफाजत मांगी है और मैं आपके जान की हिफाजत की जिम्मेदारी लेता हूं
नतीजे में कुछ ईसाई योरूशल्म छोड़ गए, कुछ मुसलमान बन गए।
तो ये है इस्लाम फ़ख़्र है हमें मुसलमान होने पर

Prince Sulṭan Muḥammad Qadri Dara Shukoh



Today in history (29th March, 1615) Prince Sulṭan Muḥammad Qadri Dara Shukoh, the eldest son of Emperor Shah Jahan was born (9 Farvardīn/29 Ṣafar 1024/29 March 1615).
Dara Shukoh was a more studious Prince who studied Sufism, the Rigveda and Vedanta. However, he was less successful in the military sphere due to a lack of experience. Unfortunately due to a lack of critical reading Dara is either considered a Murtad (apostate) or a Prince devoid of capability, both that are incorrect & fanned by popular narratives.
"When the chosen Prophet ﷺ would go to battle against the unbelievers & the army of Islam suffered losses, the literalist scholars would say "this is a lesson in fortitude". But what need does the khātim an-nabīyīn (seal of the Prophets) have of lessons"?
- Qadri Dara Shukoh, letter dated 1655.