Thursday, August 19, 2021

अंग्रेजो को भगाने गांधीजी की क्या रणनीति थी ?




उदाहरण से समझे ।




एक विदेशी कंपनी है , उस में काम करनेवाले अधिकतर सारे कर्मचारी भारतीय है । उस कंपनी का सारा का सारा हुक्का पानी कंपनी के माल की बिक्री पर निर्भर रहता है । उस कंपनी में काम करनेवाले सारे भारतीय उस विदेशी कंपनी के सच्चे वफादार रहकर तनतोड मेहनत करके उस कंपनी को फायदा पहुंचाते है । अब कोई भारतीय मूल का समझदार आदमी उस झुलमी , तानाशाह , लोगो का खून चुसने वाली विदेशी कंपनी को भारत से भगाने की ठानता है , वो सबसे पहले स्वयं उस विदेशी कंपनी का माल नही खरीद के कंपनी का बहिष्कार करता है । यही बात वो सभी भारतीयों को समझाता है । धीरे धीरे वो कंपनी में काम कर रहे भारतीय कर्मचारीयो को कंपनी की नौकरी छोडने की सलाह देता है । यदि सब रणनीति के अनुसार हुआ तो कंपनी का हुक्का पानी बंद , तो कंपनी भी बंद ।

किंतु 34 करोड की जनसंख्या को समझाना इतना सरल नही होता ।




गांधीजी की इतनी सीधी सीधी बात भी हमारे कुछ भारतीय नही समझ सके ।




अंग्रेज हमारे देश में आए थे व्यापारी बनकर , हमारे ही राजा महाराजाओ से लोन लेकर हमारे ही भारतीयो को कर्मचारी बनाकर हमे गुलाम बनाया ।




गांधीजी की स्पष्ट रणनीति थी , अंग्रेजी वस्तुओ का बहिष्कार करे , स्वदेशी वस्तुओ का स्वीकार करे, सभी भारतीय अंग्रेजो की नौकरीया छोडे.....




इस मे से कुछ लोग गांधीजी की बात मान रहे थे कुछ लोग नही मान रहे थे । किसी को गांधीजी से अहम का टकराव था तो कुछ लोग ज़िन्दगी भर अंग्रेजो के वफादार बने रहना चाहते थे . . . . .




गांधीजी अपने विचार लोगो तक पहुंचाने लोगो को समझाने , मनाने समय लेते थे , जबकि हमारे क्रांतिकारी झटके में परिणाम चाहते थे ।




केवल 50 हजार अंग्रेज पूरे भारत पर राजाओ की तरह राज करते थे ।

सोचिए ऐसा क्यों

अंग्रेजो की इस कूटनीति से तो हिटलर भी हैरान था । क्योंकि हमारे राजाओ को भारतीय जनता की परवाह नही थी, वे अंग्रेजो के साथ मिलकर बेजुबान जानवरो का शिकार करने का मज़ा लेते थे , अय्याशी करते थे । हमारे ही भारतीय अंग्रेज सरकार में बडी मात्रा में नौकरीया करते थे , हमारे स्वतंत्रता सेनानीयो को मौत के घाट उतार देते थे ।




बदले में अगर हमने भी हथियार उठा लिया होता तो हमे ही हमारे भारतीय मूल के अंग्रेजी सिपाईयो को मारना पडता । हमारा सामना करने के लिए अंग्रेज दूसरे देशो से सिपाई बुलवाकर हम लोगो का खून बहाते । वैसे भी उस वक्त अंग्रेजो का भारत की तरह बहुत सारे देशो पर कब्जा था । ये क्रांति हमे कितनी सफलता दिलवाती ?




वैसे भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजो के खिलाफ जापान और हिटलर से सहायता तो ली थी , आखिर में नतिजा क्या आया ? अंग्रेजोने अपने सहयोगी देश की मदद से जापान और जर्मनी को दूसरे विश्व युद्ध में हराया और नेताजी के 30 हजार से भी ज्यादा सिपाईयो को बंदी बना दिया , फिर उन सिपाईयो का केस पंडित नेहरूजी ने लडा ।




रक्तरंजित क्रांति के लिए बहुत थोड़े से लोग तैयार होते थे , हथियारो का जुगाड करने बहुत सी अनीति अपनानी पडती थी ।

दूसरी ओर स्वदेशी चरखा चलाकर अंग्रेजी राज को खूल्ली चुनौती दी जाती थी , चरखे के कारण ब्रिटन के लंकाशायर और मैनचेस्टर शहर की कपडा मिलो में ताले लग गए थे ।

( दुःख की बात तो यह है की आज वही स्वदेशी के प्रतीक चरखे का मज़ाक उडाया जाता है ! ! )




क्रांतिकारीयो को कुचलने के लिए अंग्रेजो के पास गोलाबारुद था , फांसी के फंदे थे , मगर गांधी की आंखो में आंखे डालकर बात करे वैसा सत्यवादी नही था . . . .




यदि रक्तरंजित से ही आजादी मिलनी होती तो वैसी आजादी हमे 1857 में ही मिल जाती . . . . . .

1857 में जितना जान - माल का नुकसान हमने अंग्रेजो का किया था उतना नुकसान तो अंग्रेजो को कभी नही हुआ।




1857 में क्या हिंदू , क्या मुसलमान , क्या सिख ? सभी मिलकर टूट पडे थे अंग्रेजो पर . . . .




1857 में जितने हथियार अंग्रेजो के पास थे उनसे कही ज्यादा हथियार हमारे राजा महाराजाओ के पास थे ।




फिर भी अंग्रेज भारत छोड़कर नही गए । वैसे भी 1857 का वो विद्रोह देशस्वातंत्रता हेतु नही बल्कि हिंदु मुसलमानो का अंग्रेजो द्वारा गाय और सुअर की चरबी चखवाकर धर्मभ्रष्ट के विरुद्ध किया गया विद्रोह था ।

अंग्रेज राजाओ के साम्राज्य हडप कर रहे थे , राजा अपने साम्राज्य को बचाने 1857 के सैनिक विद्रोह में शामिल हुए ।




19 वी सदी आते-आते हमारे ज्यादातर राजा अंग्रेजो के साथ मिल गए , सारे हथियार हमारे स्वातंत्रता सेनानी के खून से रंगने लगे । 1935 आते आते अंग्रेज भारत में हिंदू - मुस्लिम - सिख - दलित के बीच जमकर आग लगा चुके थे । ऐसी नफरत की आंधी में सबको शांति का पाठ पढाना मतलब अपनी जान गवाहना . . . . .




गांधीजी कोई एक जाती एक वर्ग के नेता नही थे । वे सबके हित के बारे में सोचते थे ।




देश की आजादी में बहुत सारा बलिदान है , उन बलिदानो को शत् शत् नमन भी करते हैं ।

आजादी हिंसा से तो कतेह नही आई । ब्रिटन दोनों विश्व युद्ध विजेता देश था , भारत की हिंसात्मक बगावत कुचलना उनके बांये हाथ का खेल था । किंतु गांधीजी ने कभी ये नही कहा की आजादी मैंने दीलवाई । वे तो देश आजाद होने के बाद भी बुड्ढापे में लोगो के बीच नफरत की आग बुझाने का काम करते रहे ।




भगतसिंह , चंद्रशेखर आजाद , नेताजी सुभाषचंद्र बोस के विचार भले ही अहिंसा से अलग थे किंतु वे लोगो में देशभक्ति की भावना गांधीजी के कारण जागी । वे लोगो ने अपने प्राणो की आहुति दी मगर गांधी के विरुद्ध एक शब्द नही कहा ।




दूसरी ओर आजकल का नौजवान देश के लिए अपने नाखून कटवाने जीतना भी बलिदान नही देता वो आज गांधी जैसे महात्मा को गालीया देता रहता है ।
देश का दुर्भाग्य . . . . .

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