Wednesday, February 9, 2022

हम सब कितने बदल गए









फ़ोटो (पेंटिंग) में आप चेचन महिला को देख सकते हैं जिसने अपने सर को ना ढक कर अपने हेजाब को हांथ मे ले रखा है, और हथियारबंद मर्दों के बीच में खड़ी है, और मर्दों ने महिला की जानिब से मुंह फेर रखा है(ग़ैर-महरम)
ये कॉकस (क़फ़क़ाज़) जिसका हिस्सा आज दाग़िस्तान, चेचेनिया सहित कई इलाक़े हैं, वहां आपसी ख़ूनरेज़ी रोकने के लिए इस तरह के ट्रिक का प्रयोग किया जाता था।
जब महिलाओं के ये लगने लगता था के मर्दों का दो गिरोह अब आपस में ख़ूनरेज़ी कर लेगा तो वो लड़ते हुए लोगों के भीड़ के बीच में आ जाती थी। और आते ही अपने हिजाब को उतार लेती थीं, और औरतों के सम्मान में तमाम मर्द अपना मुंह दुसरे जानिब फेर लेते हैं, जिससे लड़ाई ख़ुद ब ख़ुद रुक जाती थी।
उस्मानी तुर्कों के ज़ेर ए निगरानी रहने वाला ये इलाक़ा लड़ाकु क़बाईलियों का घर है, जिनके जीवन का एक ही मक़सद है लड़ना। रुस से पिछले 400 साल से लड़ रहे हैं।
वैसे इस्लामी नज़रिया में ग़ैर-महरम और महरम का कंसेप्ट बिलकुल ही क्लियर है, पर फ़हाशत और बेहयाई के इस दौर में ग़ैर-महरम और महरम का कंसेप्ट लोगों के बीच से ख़त्म होता जा रहा है।

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