टीपू सुल्तान का एक ख़ादिम था राजा खान, जंग के वक़्त टीपू ने उसको सिपाहियों को पानी पिलाने के काम पर लगा रखा था, जब टीपू पर चौतरफे हमले हुए थे तब वोह टीपू के बहुत क़रीब था, उसके हाथ में पानी की मश्क भी थी मगर तारीख़ लिखने वालों ने लिखा है टीपू प्यासा ही इस दुनिया से गया, जब टीपू के जिस्म ने हरकत करना बंद कर दिया तो वोह टीपू के क़रीब गया और गले से हार निकाल कर टीपू के शहीद सिपाहियों के बीच लेट गया,
उसके जिस्म पर एक खरोंच भी नहीं थी लेकिन उसका पूरा जिस्म शहीदो के खून से सना हुआ था, उसे शहीद सिपाहियों के बीच लेट कर खुद को मर्दे मुजाहिद की फहरिस्त में लाना था,दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है दूसरों की मेहनत को अपने नाम करना, किसी का क्रेडिट मार लेना, किसी की क़ुर्बानी का खून अपने चेहरे पर लगा कर खुद को मर्दे मुजाहिद कहलाना बड़ी आम बात हो गयी है ! किसी ज़माने में एक कहा जाता थी कुछ लोग नाख़ून कटा कर शहीद की लिस्ट में शामिल हो जाते हैं, अब नाख़ून कटाने की भी ज़रूरत नहीं रही
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