Sunday, September 14, 2025

“The teacher caught the student who hung the chair.”



A teacher entered the classroom and found the chair he was to sit on hung on the ceiling. He looked at the students and smiled. Without saying a word, he proceeded to the blackboard and wrote:
Test - 15 min, 30 marks.
Q1. Calculate the distance between the chair and the floor in centimeters (1 Mark).
Q2. Calculate the angle of inclination of the chair to the ceiling, and show your workings (1 Mark)
Q3. Write the name of the student who hung the chair on the ceiling and the friends who helped him. (28 Marks).

                      “The teacher caught the student who hung the chair.”

Thursday, September 11, 2025

Word of the Day



Specialized Investment Fund (SIF)







It is an investment fund for experienced investors who can handle more risk







Wednesday, September 3, 2025

कलातपस्वी श्री आबालाल रहेमान यांचे मित्र मंडळ...




मध्यभागी कलातपस्वी श्री. आबालाल रहेमान
बसलेले डावीकडून - . ? -, श्री नारायणराव घोरपडे,
श्री जयवंतराव देशपांडे व चित्रकार श्री दत्तोबा दळवी
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मुळ फोटो कलासंग्रह: हर्षद कुलकर्णी, कोल्हापूर आर्ट गॅलरी
९९२३० ३४६०१




Monday, August 25, 2025

A Wedding Procession- Ahmedabad, India, circa 1885-86.



 Painting by Edwin Lord Weeks (1849-1903).
Edwin Lord Weeks was an American artist who traveled to India in the late 19th century. He painted vibrant scenes of Indian life, capturing the beauty of landscapes and daily activities. His artwork, filled with rich colors and attention to detail, reflects his deep appreciation for India's culture and architecture.




Saturday, August 16, 2025

टीपू सुल्तान



टीपू सुल्तान का एक ख़ादिम था राजा खान, जंग के वक़्त टीपू ने उसको सिपाहियों को पानी पिलाने के काम पर लगा रखा था, जब टीपू पर चौतरफे हमले हुए थे तब वोह टीपू के बहुत क़रीब था, उसके हाथ में पानी की मश्क भी थी मगर तारीख़ लिखने वालों ने लिखा है टीपू प्यासा ही इस दुनिया से गया, जब टीपू के जिस्म ने हरकत करना बंद कर दिया तो वोह टीपू के क़रीब गया और गले से हार निकाल कर टीपू के शहीद सिपाहियों के बीच लेट गया,
उसके जिस्म पर एक खरोंच भी नहीं थी लेकिन उसका पूरा जिस्म शहीदो के खून से सना हुआ था, उसे शहीद सिपाहियों के बीच लेट कर खुद को मर्दे मुजाहिद की फहरिस्त में लाना था,दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है दूसरों की मेहनत को अपने नाम करना, किसी का क्रेडिट मार लेना, किसी की क़ुर्बानी का खून अपने चेहरे पर लगा कर खुद को मर्दे मुजाहिद कहलाना बड़ी आम बात हो गयी है ! किसी ज़माने में एक कहा जाता थी कुछ लोग नाख़ून कटा कर शहीद की लिस्ट में शामिल हो जाते हैं, अब नाख़ून कटाने की भी ज़रूरत नहीं रही




Thursday, August 7, 2025



1542 ईस्वी का दृष्टांत है. बीकानेर के राव जैतसी, पाहेबा गांव के निकट अपने ही स्वजन जोधपुर के राव मालदेव के विरुद्ध संघर्षरत थे.
उक्त विकट परिस्थिति में भी राव जैतसी को अपने वचन की आन रखने के लिए रात्रि को बीकानेर के गढ में वापस आना पड़ा था, क्योंकि दो मुस्लिम पठान, जो घोड़ों का व्यापार करते थे, अपनी अधिशेष राशि लेने के लिए उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे.
उक्त स्थिति में राव जैतसी की सहृदयता से विभूषित हो कर मुस्लिम पठानों ने अधिशेष राशि लेने से मना कर दिया था. अनन्तर, जब राव जैतसी रात्रि के अंतिम प्रहर में युद्ध स्थल पर पहुंचे तो भ्रमवश बीकानेर की सेना विश्रंखलित हो चूकी थी. फलत: राव जैतसी को कुछ सैनिकों के साथ अकेले ही युद्ध करना पड़ा था.
अंतत: राव जैतसी वीर गति को प्राप्त हो गए, तदुपरांत जोधपुर के राठौड़ बीकानेर पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए अग्रसर हुए.
इतिहास साक्षी है कि भोजराज रूपावत जो बीकानेर नगर की रक्षा करने के लिए कटिबद्ध थे, तब मुस्लिम पठानों ने भोजराज रूपावत का साथ देते हुए बीकानेर की अस्मिता की रक्षा के लिए अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था.
सैयद सालू एवं धन्ना, जो मुस्लिम पठानों के नाम हैं, उनकी मजार आज भी बीकानेर में अवस्थित है.
निस्संदेह, उक्त मजार जो आज ' दो भाइयों की मजार ' के रूप में बीकाणे की संस्कृति में रची बसी हुई है, हमें साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए उत्प्रेरित करती है.



मोहम्मद शाह



आज के दिन ही, 7 अगस्त 1702 ई. के दिन गजनी (अफगानिस्तान) में मोहम्मद शाह की पैदाइश हुई थी। मोहम्मद शाह औरंगजेब के परपोते थे, उस समय हिंदुस्तान में औरंगजेब की ही हुकूमत कायम थी। मुहम्मद शाह का दौर-ए-हुकूमत कई मायनों में बहुत अहम् माना जाता है, उनके दौर में मुगलिया हुकूमत लगातार अपने जवाल की ओर बढ़ती रही। 1739 में नादिरशाह के हमले के बाद से ही मुगलिया सल्तनत का सूरज डूबने लगा था।
मिर्जा नासिर-उद-दीन मुहम्मद शाह रोशन अख्तर 15वें मुग़ल बादशाह थे उन्होंने 1719 से 1748 तक हिंदुस्तान पर हुक्मरानी की थी। उनका दौर-ए-हुकूमत कई मायनों में बहुत अहम् माना जाता है, जंहा एक ओर उनके दौर में मुगलिया सल्तनत मोतियों की माला की तरह टूट कर बिखर गयी तो वहीं उनके ही दौर में उर्दू शायरियों दौर अपने ओरुज पर था।
मुग़लों की दरबारी और शाही ज़बान तो फ़ारसी थी, लेकिन जैसे जैसे दरबार की गिरफ़्त आम लोगों की ज़िंदगी पर ढीली पड़ती गई, लोगों की ज़बान यानी उर्दू उभरकर ऊपर आने लगी बिलकुल ऐसे ही जैसे बरगद की शाख़े काट दी जाएं तो उसके नीचे दूसरे पौधों को फलने फूलने का मौक़ा मिल जाता है। इसलिए मोहम्मद शाह रंगीला के दौर को उर्दू शायरी का सुनहरा दौर कहा जा सकता है।
उस दौर की शुरूआत ख़ुद मोहम्मद शाह के तख़्त पर बैठते ही हो गई थी जब बादशाह के साल-ए-जुलूस यानी 1719 में वाली-ए-दक्कनी का दीवान दक्कन से दिल्ली पहुंचा। उस दीवान ने दिल्ली के ठहरे हुए अदबी झील में ज़बरदस्त तलातुम पैदा कर दिया और यहां के लोगों को पहली बार पता चला कि उर्दू (जिसे उस ज़माने में रेख़्ता, हिंदी या दक्कनी कहा जाता था) में यूं भी शायरी हो सकती है।
ज़ाहिर है कि बाबर, अकबर या औरंगजेब के मुक़ाबले मोहम्मद शाह कोई फौजी जरनल नहीं थे और नादिर शाह के खिलाफ करनाल के अलावा उन्होंने किसी जंग में फौज की कयादत नहीं की थी। न ही उनमें जहांबानी व जहांग़ीर की वो ताक़त और तवानाई मौजूद थी जो पहले मुग़लों की खासियत थी।
मुहम्मद शाह एक मर्द-ए-अमल नहीं बल्कि मर्द-ए-महफिल थे और अपने परदादा औरंगज़ेब के मुक़ाबले में युद्ध की कला से ज़्यादा लतीफ़े की कला के प्रेमी थे।
क्या मुग़ल सल्तनत के जवाल की सारी ज़िम्मेदारी मोहम्मद शाह पर डाल देना सही है? हमारे ख़्याल से ऐसा नहीं है। ख़ुद औरंगज़ेब ने अपनी जुनूनी सोच, सख्त इन्तिज़ामी और बिला-वजह फौज बढ़ाने से तख़्त के पांव में दीमक लगाने की शुरुआत कर दी थी।
जिस तरह सेहतमंद शरीर को संतुलित भोजन की ज़रूरत होती है, वैसे ही सेहतमंद समाज के लिए ज़िंदा दिली और ख़ुश तबियत इतनी ही ज़रूरी है जितनी की ताक़तवर फौज। औरंगज़ेब ने तलवार के पलड़े पर ज़ोर डाला तो उनके परपोते ने हुस्न और संगीत वाले पर नतीजा वही निकलना था जो सबके सामने है।




Tippu sultan tiger of Karnataka


 

Tuesday, August 5, 2025

मक्का गेट औरंगाबाद महाराष्ट्र 1980 में


 

तमिलनाडु के तंजावूर की ऐतिहासिक तोप का तस्वीरें पहले कि और अब कि


 

Saadat Hassan Manto (11 May 1912 – 18 January 1955)



was an Urdu writer, famous for his short stories, Boo, Khodo, cold meat and famous Toba Tecsingh.
Along with being a storyteller, he was film and radio screenwriter and journalist.
In his short lifetime he published two short stories collections, a novel, five collections of radio drama, three collections of compositions and two collections of personal drawings.
Writing mainly in Urdu, he produced 22 collections of short stories, a novel, five series of radio plays, three collections of essays and two collections of personal sketches. His best short stories are held in high esteem by writers and critics.
He is best known for his stories about the partition of India, which he opposed, immediately following independence in 1947
Manto was tried six times for alleged obscenity in his writings; thrice before 1947 in British India, and thrice after independence in 1947 in Pakistan, but was never convicted.
He is acknowledged as one of the finest 20th-century Urdu writers and is the subject of two biographical films: the 2015 film Manto, directed by Sarmad Khoosat and the 2018 film Manto, directed by Nandita Das.





Thursday, July 31, 2025

लड़की के इस आखिरी जवाब में इंसानियत की सारी तारीख़ का किस्सा समा गया...

पुराने ज़माने के एक बादशाह ने गुलामों के बाजार में एक गुलाम लड़की देखी, जिसकी बहुत ज़्यादा कीमत मांगी जा रही थी।
बादशाह ने उस गुलाम लड़की से पूछा,
"आख़िर तुममें ऐसा क्या है जो सारे बाजार से तुम्हारी कीमत ज़्यादा है?"
लड़की ने कहा, "बादशाह सलामत, यह मेरी ज़हानत (समझदारी) है जिसकी कीमत मांगी जा रही है।"
बादशाह ने कहा, "अच्छा, तो मैं तुमसे कुछ सवाल पूछता हूँ अगर तुमने सही जवाब दिये तो तुम आज़ाद हो, लेकिन अगर जवाब नहीं दिए तो तुम्हें मार दिया जाएगा।"
लड़की के मंजूर करने पर बादशाह ने पूछा:
1. सबसे क़ीमती कपड़ा कौन सा है?
2. सबसे बेहतरीन खुशबू कौन सी है?
3. सबसे लज़ीज़ खाना कौन सा है?
4. सबसे नरम बिस्तर कौन सा है?
5. सबसे खूबसूरत मुल्क कौन सा है?
लड़की ने गुलामों के बाजार के ताजिर से कहा, "मेरा घोड़ा तैयार करो क्योंकि मैं आज़ाद होने जा रही हूँ.."
फिर पहले सवाल का जवाब दिया:
"सबसे क़ीमती कपड़ा किसी गरीब का वह कपड़ा है, जिसके अलावा उसके पास कोई दूसरा कपड़ा नहीं होता। यह कपड़ा फिर सर्दी, गर्मी, ईद-त्योहार हर मौके पर चलता है।"
"सबसे बेहतरीन खुशबू मां की होती है, भले वह मवेशियों का गोबर ढोने वाली मज़दूर ही क्यों न हो, उसकी औलाद के लिए उसकी खुशबू से बेहतरीन कुछ नहीं होगा।"
तीसरे सवाल के जवाब मे लड़की ने कहा, "सबसे बेहतरीन खाना भूखे पेट का खाना है। भूख हो तो सूखी रोटी भी लज़ीज़ लगती है।
दुनिया का नरम बिस्तर सबसे बेहतरीन इंसाफ़ करने वाले का होता है, जालिम को मलमल और नर्म रूई से सजाया बिस्तर भी चैन नहीं देता।"
यह कहकर लड़की घोड़े पर बैठ गई..
बादशाह, जो चकित हो रहा था, अचानक उसने चौंक कर कहा, "लड़की, तुमने एक सवाल का जवाब नहीं दिया..
"सबसे खूबसूरत मुल्क कौन सा है ?"
लड़की ने कहा, "बादशाह सलामत, दुनिया का सबसे खूबसूरत मुल्क वह है जो आज़ाद हो, जहाँ कोई गुलाम न हो और जहाँ के हुक्मरान ज़ालिम और जाहिल न हों।"


लड़की के इस आखिरी जवाब में इंसानियत की सारी तारीख़ का किस्सा समा गया...








ताज महल की सबसे पुरानी तस्वीर जो 1859 में खैंची गई।